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Tuesday, June 12, 2007

शाकाहार और मांसाहार

इस दुविधाजनक परिस्थिति में कई बार पडा हूँ जब मुझसे किसी ने पूछा कि शाकाहार क्यों।
मेरा शाकाहारी बन्ने का कारण शैधान्तिक है। और ये मेरे मांसाहारी मित्रों को पसंद नही। मेरी माँ को यदि कोई प्रश्न करे कि आपका बीटा शाकाहारी क्यों है तो वो यही कहती है कि उसे हाजमे कि तकलीफ है। माँ अनर्थक बहस मे ना पड़ने के लिए ऐसा कहती है।
मैं इस विषय में झूठ नही कहता। मैं शाकाहारी हूँ और इस बात का गर्व कर्ता हूँ। मांसाहार को मैं अनैतिक मानता हूँ और इस विषय में तर्क वितर्क से मुझे कोई परहेज नही।
पर इससे पहले कि कोई मेरे विचारों पर पर कोई धारणा बना ले मैं कुछ बातें स्पष्ट कर देना चाहता हूँ। पहला ये कि केवल मांसाहार करने से ही कोई हिंसक नही बन जाता ना ही शाकाहारी बन्ने पर कोई महात्मा हो जाता है। व्यक्तिगत तौर पे नैतिकता की परिभाषा वह नही जो सामान्य तौर पे होती है। उदहारण: हमारे खान पान की आदतें हमारी नैतिकता के ज्ञान पे नही बल्कि हमारी परवरिश पर निर्भर करती है। जब तक खान-पान में हम अपनी तरफ से मूलभूत परिवर्तन ना लायें तब तक उसपे सिद्धांतों की कोई प्रासंगिकता नही।
मेरी परवरिश एक मांसाहारी परिवार में हुई। मैं एक आयु तक स्वयम मांसाहारी था। मैंने जान-बूझ के अपनी आदतों में परिवर्तन लाया। मुझे अधिकार है कि मैं अपने इस फैसले का पूछे जाने पर सही कारण बताऊँ। मैं नही मानता कि इसमे किसी को कोई बात व्यक्तिगत आक्षेप के रुप में लेनी चाहिए।
खैर! मंसहरियों से जब भी मैं इस तर्क में पढ़ जाता होन तो एक मेरे बताये कारणों का एक जवाब सदैव पाटा हूँ। क्या वृक्षों में प्रान नहीं? क्या तुम्हे यकीं के साथ पता है कि उनकी ह्त्या वक़्त उन्हें कोई तकलीफ नही होती?

1 comment:

Anonymous said...

get well soon